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۞ Sri Aurobindo ۞ महर्षि अरविन्द
अगर ऐसा कोई व्यक्ति पहले कभी हुआ था, तो वह भारत मेँ ही हुआ होगा। श्री अरविँद के व्यक्तित्व मेँ योगी, कवि और दार्शनिक, तीनोँ का समन्वय था और वे सबके सब एक ही लक्ष्य की ओर गतिशील थे।
श्री अरविन्द का शरीरपात सन् 1950 ई. के दिसंबर मास मेँ आज ही के दिन हुआ था.. मैँ श्री अरविँद को न देख सका अब तो यही एकमात्र उपाय है कि मन से यानी अध्ययन और चिन्तन से श्री अरविँद को समझने का प्रयास करूं। यद्यपि अध्ययन और... चिन्तन अर्थाँत मन सत्य को समझने का सही मार्ग नहीँ है.. चिँतन मेँ प्रामाणिकता श्रद्धा से आती है।
श्री अरविन्द के व्यक्तित्व के पहलू अनेक हैँ और सभी पहलू एक से बढ़कर एक उजागर हैँ। राजनीति मेँ वे केवल पांच वर्ष तक रहे थे। किँतु उतने ही दिनोँ मेँ उन्होँने सारे देश को जगाकर उसे स्वतंत्रता-संघर ्ष के लिए तैयार कर दिया। असहयोग की पद्धति उन्हीँ की ईजाद थी। भारत का ध्येय पूर्ण स्वंत्रता की प्राप्ति है, यह उद्घोष भी सबसे पहले उन्हीँ ने किया था।
दार्शनिक तो यूरोप मेँ बहुत उच्च कोटि के हुए हैँ, किन्तु उनके दर्शन मेधा की उपज हैँ, तर्क शक्ति के परिणाम हैँ। उन्होँने जो कुछ लिखा, सोचकर लिखा। दार्शनिक के रुप मेँ श्री अरविन्द की विशेषता यह है कि वे केवल प्रज्ञावान पंडित ही नहीँ, बहुत बड़े योगी भी थे। अतएव उन्होँने जो कुछ लिखा, देखकर लिखा, अनुभव करके लिखा। श्री अरविन्द के दर्शन का सार उनकी अनुभूति है। विचार उस अनुभूति को केवल परिधान प्रदान करता है। श्री अरविन्द ने भारत की इस परम्परा को फिर से प्रमाणित कर दिया कि सच्चा दर्शन वह है, जो सोचकर नहीँ, देखकर लिखा जाता है
अगर ऐसा कोई व्यक्ति पहले कभी हुआ था, तो वह भारत मेँ ही हुआ होगा। श्री अरविँद के व्यक्तित्व मेँ योगी, कवि और दार्शनिक, तीनोँ का समन्वय था और वे सबके सब एक ही लक्ष्य की ओर गतिशील थे।
श्री अरविन्द का शरीरपात सन् 1950 ई. के दिसंबर मास मेँ आज ही के दिन हुआ था.. मैँ श्री अरविँद को न देख सका अब तो यही एकमात्र उपाय है कि मन से यानी अध्ययन और चिन्तन से श्री अरविँद को समझने का प्रयास करूं। यद्यपि अध्ययन और... चिन्तन अर्थाँत मन सत्य को समझने का सही मार्ग नहीँ है.. चिँतन मेँ प्रामाणिकता श्रद्धा से आती है।
श्री अरविन्द के व्यक्तित्व के पहलू अनेक हैँ और सभी पहलू एक से बढ़कर एक उजागर हैँ। राजनीति मेँ वे केवल पांच वर्ष तक रहे थे। किँतु उतने ही दिनोँ मेँ उन्होँने सारे देश को जगाकर उसे स्वतंत्रता-संघर
दार्शनिक तो यूरोप मेँ बहुत उच्च कोटि के हुए हैँ, किन्तु उनके दर्शन मेधा की उपज हैँ, तर्क शक्ति के परिणाम हैँ। उन्होँने जो कुछ लिखा, सोचकर लिखा। दार्शनिक के रुप मेँ श्री अरविन्द की विशेषता यह है कि वे केवल प्रज्ञावान पंडित ही नहीँ, बहुत बड़े योगी भी थे। अतएव उन्होँने जो कुछ लिखा, देखकर लिखा, अनुभव करके लिखा। श्री अरविन्द के दर्शन का सार उनकी अनुभूति है। विचार उस अनुभूति को केवल परिधान प्रदान करता है। श्री अरविन्द ने भारत की इस परम्परा को फिर से प्रमाणित कर दिया कि सच्चा दर्शन वह है, जो सोचकर नहीँ, देखकर लिखा जाता है